Image for Khidki

Khidki

See all formats and editions

विदश म लब समय स रह रही यवती जब सतरी क रप म माता-पिता क घर लौटती ह तो परान नकश खोजती ह, लकिन अब तो उसक लिए वह खिडकी भी नही खलती जिसक इदरधनषी पारदरशी शीश कभी उसक अपन थ। हमार सापरदायिक ससकार शिकषा और सभयता पर अकसर ही भारी पडत ह। भाषा क महीन रशो स बनी जानवाली कहानी क लिए लखिका को मरा साधवाद।-मैत्रेयी पुष्पाशीला राय शर्मा की कहानियों का पर्यावरण सामाजिक होकर भी अधिकतर पारिवारिक है। कहानियाँ 'सौतेली माँ' और 'चिल्लर बहू' दो भिन्न वातावरण से जनमती हैं लेकिन दोनों के जीवन-मूल्य जैसे विवाह संस्था और धर्म के आधार पर संचालित हैं। इस जंजीर की कड़ी ही कहानी 'खिड़की' है। इसमें मनोविज्ञान की भीतरी तहों का कार्य-व्यापार है। सूक्ष्म मनोभावों का अंकन यहाँ गौरतलब है। कहन की ऐसी विशेषता भी द्रष्टव्य है जो अन्य कथा-कथन से अप्रभावित है। यही पाठ में विश्वसनीयता पैदा करता है। यह कहानीकार का अपना संवेदना, कथ्य और कहन का संसार है। यह निजता का ऐसा हस्ताक्षर है जो मौलिक है।-लीलाधर मंडलोई

Read More
Special order line: only available to educational & business accounts. Sign In
£22.94 Save 15.00%
RRP £26.99
Product Details
Prabhat Prakashan
938947129X / 9789389471298
Hardback
17/08/2021
India
218 pages
140 x 216 mm
Children / Juvenile Learn More